विविध बीमारियाँ और उचित खान-पान
इस अंक से विविध बीमारियाँ और उचित खान-पान' नामक एक नई लेखमाला हम आरंभ कर रहे हैं। किसी भी बीमारी की हालत में डाक्टर सलाह देते हैं कि उचित खान-पान और परहेज का पालन करें। परन्तु वे कई बार यह बताते ही नहीं कि वास्तव में 'उचित' क्या है। इसे ध्यान में रखते हुए, विविध प्रकार की बीमारियों के दौरान 'उचित खान-पान ओंर परहेज' क्या होना चाहिए और बीमारी दूर होने के बाद इसमें किस प्रकार कौन सा परिवर्त्तन किया जाना चाहिए इस सबंध में पूरी जानकारी इस लेखमाला में दी जाएगी।
लेखमाला के इस पहले लेख में हम देखेंगे कि दिल का दौरा पडने के बाद और उसके ठीक होने के बाद का भोजन क्या हो और कैसा हो।
विविध बीमारियाँ और उचित खान-पान
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दिल का दौरा और भोजन
1) दिल का दौरा पडने के बाद विशेष सुरक्षा विभाग में रहते हुए प्रारंभिक दो-तीन दिनों तक केवल तरल पदार्थ ही ग्रहण करें। इसमें चॉवल की माँड खीर, सूप, मट्ठा, फलो के रस आदि का समावेश होना चाहिए । हर दो घंटे बाद ये पदार्थ दिए जाने चाहिए । बीमारी की तीव्रता कम होने लगे तब ठोस किंतु नर्म, मुलायम पदार्थ दिये जाने चाहिए, जैसे खूब पकाए गए वाँवल, डबलरोटी, बिस्कुट, इडली आदि । परंतु मसालेदार, तीखे, अत्याधिक तेल की मात्रा वाले और अत्याधिक स्निग्ध पदार्थों को ग्रहण न करें ।
2) बिशेष सुरक्षा विभाग से बाहर आने के बाद धीरे धीरे अपने नियमित ठोस ' भोजन कीं दिशा में जाया जा सक्ता है ।
3) इस ठोस भोजन में आमतौर पर १५०० से १८०० तक केलरीज होनी चाहिए ।
4) जिन लोगों का वजन अधिक है, उन्हें वज़न कम करने की मात्रा के अनुपात में कैलरीज की मात्रा घटानी चाहिए। इसी प्रकार, मधुमेह के रोगियों और रक्त में स्निग्धता की मात्रा को ध्यान में रखते हुए क्रैलरीज की मात्रा में परिवर्तन हो सकता है । घी, मक्खन, अंडे का पीला माग, मूँगफली, नारियल आदि पूर्णत: त्याज्य है । तलने के लिए मकई का तेल, करडईं का तेल, सूर्यंफूल का तेल आदि प्रकार के पॉली अन्सैच्युरेटेड फैटी एसिड वाले तेलों का प्रयोग करें । '
4) जिन लोगों का वजन अधिक है, उन्हें वज़न कम करने की मात्रा के अनुपात में कैलरीज की मात्रा घटानी चाहिए। इसी प्रकार, मधुमेह के रोगियों और रक्त में स्निग्धता की मात्रा को ध्यान में रखते हुए क्रैलरीज की मात्रा में परिवर्तन हो सकता है । घी, मक्खन, अंडे का पीला माग, मूँगफली, नारियल आदि पूर्णत: त्याज्य है । तलने के लिए मकई का तेल, करडईं का तेल, सूर्यंफूल का तेल आदि प्रकार के पॉली अन्सैच्युरेटेड फैटी एसिड वाले तेलों का प्रयोग करें । '
यदि बुढापे क्रे कारण चबाने में कठिनाई हो, तो नर्म ठोस पदार्थों का प्रयोग करें ।
शरीर के हिलने डुलने पर प्रतिबंध, बुढापा और कुछ दवाओं के विपरीत परिणाम के कारण मलावरोध की समस्या इन मरीजों के सम्मुख उपस्थित ३ होती है। यदि मलत्याग के लिए जोर " दिया जाए, तो 'हृदय पर तनाव बढ सकता है । अत: यह टालना ही होता है । इसके लिए भोजन में रशवाली सब्जियाँ की मात्रा अधिक होनी चाहिए। इसके साथ ही हरी सब्जियाँ, पानी तथा नर्म सारक पदार्थ नियमित रूप से लिए जाने चाहिए। आवश्यक्ता नुसार मनुका, तुलसी के वीज जैसे घरेलु नुरखो का भी प्रयोग किया जा सकता है ।
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माँस से बने पदार्थों में स्निग्धता की . मात्रा बहुत अघिक होती है। अत: प्रारंभिक छ: से बारह सप्ताह तक इन्हें पूर्णत: त्याज्य समझें । उसके बाद चर्बीरहित रेड मीट का उपयोग करें। यदि हन्हें उबालका या भूनकर खाया जाए, तो पकाने के लिए तेल का प्रयोग टाला जा सक्ता है । ‘मीट' की अपेक्षा मछली का प्रयोग करना अधिक अच्छा है ।
बहुत ही सीमित मात्रा में (प्रतिदिन २५ मिलिटर) मद्यपान चल सकता है। परंतु मद्यपान कभी भी सीमा से बाहर जाने की संभावना होने के कारण मद्यपान न काना ही बेहतर है ।
उपवास के पदार्थों में काबोंहाइड्रेटस और स्निग्ध पदार्थ अधिक होते है, और वे गलत समय पर लिये जा सकने की भी संभवना होती है । अत: बेहतर यही है कि उपवास न किया जाए।
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किसी त्यौहार के अवसर पर अपने खान-पान की सीमा का पालन कारते हुए एकाध मिठाई चखी जा सकती है, परन्तु उसका अति सेवन हानिकारक ही होता है ।
यह पता नहीं चलता कि होटलों में पदार्थ को पकाने के लिए किस माध्यम का प्रयोग किया गया है । इसके अलावा अस्वच्छता के कारण वहाँ कीटाणुओं का प्रादुर्भाव होने की संभावना भी अधिक होती है । अत: होटल में खाने से बचना चाहिए। अपरिहार्य स्थिति उत्पन्न हो ही जाए, तो स्निग्ध कॉ निश्चित रूप से टाल दें और अन्य पदार्थ सीमित मात्रा में ग्रहण करें
सफर के दौरान भी इसी तत्व के आधार पर चुने हुए और जहॉ तक हो सके, घर में तैयार किए गए पदार्थ ही साथ रखें ।