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कैसे करे मधुमेह(sugar) में शिलाजीत का सेवन

मधुमेह(sugar) में शिलाजीत का सेवन आयुर्वेद में मधुमेह को नियंत्रित करने वाली औषधियों में शिलाजतु (शिलाजीत) का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका मधुमेह की किसी भी अवस्था में प्रयोग किया जा सकता है। यदि रोग प्रारम्भिक अवस्था में है, तो इसके प्रयोग से पूर्ण नियंत्रण सम्भव है। यदि मधुमेह के बाद की अवस्थाओं मे भी इसका प्रयोग किया जाए, तो यह शरीर को दुर्बल और शिथिल नही होने देता तथा इस रोग के उपद्रवों को भी नियंत्रित करने में अपना
 मधुमेह(sugar) में शिलाजीत का सेवन                                                                                                                                    आयुर्वेद में मधुमेह को नियंत्रित करने वाली औषधियों में शिलाजतु (शिलाजीत) का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका मधुमेह की  किसी भी अवस्था में प्रयोग किया जा सकता  है। यदि रोग प्रारम्भिक अवस्था में है, तो इसके प्रयोग से पूर्ण नियंत्रण सम्भव है। यदि मधुमेह के  बाद की अवस्थाओं मे भी इसका प्रयोग किया जाए, तो यह शरीर को दुर्बल और शिथिल नही होने देता तथा इस रोग के उपद्रवों को भी नियंत्रित करने  में अपना योगदान करता  है। स्वस्थ व्यक्ति भी इसका प्रयोग करे, तो  शारीरिक सकती  तो प्राप्त होती हीँ है, प्रमेह और मधुमेह की आशंका से भी मुक्ति मिलती है।
 मधुमेह(sugar) में शिलाजीत का सेवन
 मधुमेह(sugar) में शिलाजीत का सेवन 




शिलाजीत का रसायन रूप


 यदि विधिपूर्वक नियतमात्रा में पर्याप्त शिलाजीत का प्रयोग किया जाए, तो यह शरीर स्थित रोग एवं विकृतियों को दूर का शरीरस्थ धातुओं को पुष्ट कर बल, आयु, वर्ण, बुद्धि एवं कांति को बढाता है।

 इसका दो प्रकार से प्रयोग किया जा  सकता है
1.  प्रयोग की विशिष्ट बिधि
2.  सामान्य विधि।
 यदि शीघ्रता पूर्वक अधिक लाभ प्राप्त करना हो, तो विश्राम करते हुये पूर्ण पथ्य का पालन कारते हुए विशेष अनुमान के साथ इसका प्रयोग नियतकाल तक करना चाहिए। यही रसायन का स्वरूप है। यदि सामान्य  बिधि से इसका प्रयोग किया जाए तो लम्बे समय तक नियत मात्रा लेने पर लाभ होता है। यह रसायन स्वरूप न होकर सामान्य विधि है। शिलाजीत का रसायन रूप मे प्रयोग सात सप्ताह, तीन सप्ताह अथवा एक सप्ताह तक किया जाना चाहिए इसमे सात सप्ताह के प्रयोग को "मध्यम तथा एक सप्ताह के प्रयोग को हीन माना जाता है । सामान्य बिधि से इसका निरन्तर प्रयोग तब तक करते रहना चाहिए, जब तक की इसका निर्धारित प्रमाण पूरा न हो जाए। 
शिलाजीत का प्रयोग स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करता है  तथा रोगी के शरीर से रोर्गों को दूर करता है , जिसमें विधिपूर्वक प्रयुक्त शिलाजीत लाभ न करता हो। मधुमेह, श्योल्य (मोटापा), मद , मूच्छी, गुल्म, कुष्ठ, शोथ, उदरंरोग, पाग्नडु, पीलिया, विसर्प, विष, ह्रद्रोग, वात्तव्याधि एवं शुक्र सम्बन्धी रोगों में बिशेष लाभदायी है।
मधुमेह(sugar) में शिलाजीत का सेवन
 मधुमेह(sugar) में शिलाजीत का सेवन  



शिलाजीत लेने की मात्रा



    आचार्य चरक ने शिलाजीत के रसायन रूप में प्रयोग क्रम में मात्रा को तीन प्रकार से निर्धारित किया है । 6० ग्राम प्रतिदिन, 3० ग्राम प्रतिदिन एवं 15 ग्राम प्रतिदिना व्यक्ति की प्रकृति और बल को देखकर उपर्युक्त मात्रा का प्रयोग किया जाताहै ।
   मधुमेह में आचार्यों ने इसके रसायन रूप प्रयोग को महत्व न देकर परिमाण  रूप प्रयोग को महत्व दिया है । मधुमेह में शिलाजीत का प्रयोग लम्बे समय तक करना चाहिए सांत सप्ताह में आचार्य द्वारा बताई गई श्रेष्ठ मात्रा का प्रयोग लगभग 3 किलो होता है। अत: इस परिमाण तीन किलो को  लम्बे समय में पूरा का देना भी मधुमेह के उपद्रवों को रोकने मेँ सहायक होता है । यद्यपि पुराने रोगी के मधुमेह को पूर्ण निवृति तो शिलाजीत के प्रयोग से भी नहीँ होती पर आयु बल की वृद्धि होती है तथा यदि रोग नवीन है, तो रोग का निवारण  भी हो जाता है
 मधुमेह(sugar) में शिलाजीत का सेवन
 मधुमेह(sugar) में शिलाजीत का सेवन 



प्रयोग बिधि

   आचार्य चरक द्वारा निर्दिष्ट समय एवं मात्रा के अनुसार सात सप्ताह के प्रयोग मे 3 किलो, मध्यमात्रा के प्रयोग मे डेढ किलो एवं हीन मात्रा  के प्रयोग में 75० ग्राम शिलाजीत पूरो होती है। यह प्रयोग 21 दिन में किया जाए तो क्रमश ८ एक किलो दो सौ पचास ग्राम, छ ८ सौ पच्चीस ग्राम और तीन सौ दस ग्राम शिलाजीत पूरी होती है। एक सप्ताह के प्रयोग मे क्रमश ८ चार सौ बीस ग्राम, दो सौ दस ग्राम एवं एक सौ पांच ग्राम मात्रा पूरी होती है। यह रसायन का स्वरूप है
   रसायन प्रयोग मे यदि वर्तमान में श्रेष्ठ मात्रा बीस ग्राम, मध्य मात्रा दस ग्राम और हीन मात्रा पांच ग्राम रखी जाए, तो क्रमश ८ एक विग्लो, पांच सौ ग्राम और दो सो पचास ग्राम मात्रा सात सप्ताह मे पूरी होती है, इसी तरह से इस मात्रा परिमाण रूप में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
 मधुमेह(sugar) में शिलाजीत का सेवन
 मधुमेह(sugar) में शिलाजीत का सेवन 



मधुमेह में शिलाजीत


    यदि मधुमेही में शिलाजीत का प्रयोग लम्बे समय तक किया जाए तो लाभ होता है। ढाई ग्राम सुबह एवं ढाई ग्राम शाम को (एक दिन में कुल पांच) लगभग दो वर्ष तक इसका निरन्तर सेवन करना लाभदायक होता है। इस अवधि मे लगभग साढे तीन किलो शिलाजीत का परिमाण पूरा हो जाता है। चिकित्सक के परामर्श से इससे अधिक मात्रा भी ली जा सकती है।
  शिलाजीत को दूध में, पानी में या गोमूत्र मैं घोल कर पीना चाहिए। र्यादे कब्ज  हो तो त्रिफ्ला को क्वाथ  से, रक्ताल्पता  अथवा यकृत में खराबी हो तो गोमूत्र से, शरीर मैं सूजन अथवा पैट मैं अफारा रहता हो, तो दशयूल के क्वाथ  से, हदय मे विकृति हो तो अर्जुन की छाल से या सिध्द दूध से शिलाजीत का प्रयोग करना चाहिए।
इसके सेवन काल में दूध का प्रयोग पर्याप्त मात्रा मे करना  चाहिए।

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